बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
उन कारणों की व्याख्या कीजिए जिनके बल पर चार्वाक अनुमान प्रमाण की प्रमाणिकता का खण्डन करता है।
अथवा
चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
अथवा
चार्वाक दर्शन के प्रमाण मीमांसा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचार
(Epistemology in Charvaka Philosophy)
प्रमाण विचार का अर्थ (Meaning of Epistemology)-
प्रमाण विचार दर्शन का वह भाग है जिसके द्वारा हम ज्ञान के स्वरूप तथा ज्ञान को प्राप्त करने के साधनों का अध्ययन करते हैं। व्यक्ति प्रारम्भ से ही जिज्ञासु रहा है तथा वह सदैव जानने की इच्छा रखता है, व्यक्ति प्रारम्भ से ही ज्ञान चाहता है, भारतीय दर्शन में ज्ञान का विशेष महत्व है। ज्ञान का मुख्य रूप से दो प्रकार के माने गये हैं :
1. प्रमा (Real Knowledge).
2. अप्रमा (Unreal Knowledge) |
प्रमा या Real Knowledge से तात्पर्य है कि हम वस्तु का जिस या जैसे रूप में रहती है उसी रूप में जानते हैं वह हमारे समक्ष बिल्कुल स्पष्ट होती है।
अप्रमा या Unreal knowledge एक प्रकार का झूठा ज्ञान है इसमें किसी वस्तु को वास्तविक रूप में नहीं जाना जाता जैसे रात में कभी कभी रस्सी देखने पर साँप का ज्ञान होता है या साँप को देखकर रस्सी का
प्रमा (Real Knowledge) के लिए तीन बातें आवश्यक है
1. प्रमाता (Knower),
2. प्रमेय (Object of Knowledge).
3. प्रमाण (Sources of Knowledge) |
भारतीय दर्शन से ज्ञान प्राप्त करने के लिए कई उपाय या रास्ते बताये गये हैं जिन्हें हम प्रमाण के नाम से जानते हैं अतः प्रमा या real knowledge को प्राप्त करने में जो काम में आते हैं वह प्रमाण हैं :
प्रमा को प्राप्त करने के चार साधन हैं :
1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान, 3. उपमान, 4. शब्द।
चार्वाक दर्शन प्रमाण के रूप में केवल प्रत्यक्ष को ही मानता है इसलिए चार्वाक दर्शन में केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण बतलाते हैं, अन्य किसी को नहीं। चार्वाक दर्शन में प्रमाण सम्बन्धी बातों को व्यवस्थित रूप देने को तीन बातें प्रमुख हैं :
1. केवल प्रत्यक्ष ही सही प्रमाण है चार्वाक दर्शन के अनुसार, हम प्रत्यक्ष के द्वारा ही संसार में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तथा जिन वस्तुओं का ज्ञान हमें प्रत्यक्ष द्वारा नहीं होती केवल कल्पना मात्र है। इसलिए चार्वाक दर्शन ही प्रमाण विचार पर निर्भर पाया जाता है परन्तु प्रश्न यह है कि प्रत्यक्ष (Preception) किसे कहते हैं?
प्रत्यक्ष शब्द दो शब्दों का योग है प्रति + अक्षण अर्थात् आँख के सामने संकुचित अर्थ में इसका तात्पर्य आँख के सामने हैं। परन्तु वृहत् अर्थ में हम कह सकते हैं कि किसी भी ज्ञानेन्द्रिय से कुछ जानना प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्ष ज्ञान में तीन बातें प्रमुख होती है - 1. इन्द्रिय, 2. पदार्थ, 3. उस पदार्थ के साथ इन्द्रियों का सम्पर्क। इन तीनों को मिलाकर ही प्रत्यक्ष का निर्माण होता है अगर हमारे पास इन्द्रिय के रूप में आँख या कानन हीं है तो भी प्रत्यक्ष का अभाव होता है और अगर इन्द्रिय हो लेकिन पदार्थ सामने न हो तो भी प्रत्यक्ष सम्भव नहीं है अतः पदार्थ भी आवश्यक है साथ ही उस वस्तु का सम्पर्क भी आवश्यक है छिपी हुई हालत में हमें प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। चार्वाक दर्शन के अनुसार केवल वस्तु या जड़ पदार्थ (matter) का ही प्रत्यक्षीकरण हो सकता है अतः चार्वाक ने वस्तु या जड़ को ही परमतम संख्य माना। चार्वाक दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष के लिए दूसरे प्रमाण की जरूरत नहीं रहती कहावत भी है प्रत्यक्षे कि प्रमाणम्? अर्थात् प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
2. चार्वाक दर्शन के अनुसार, अनुमान निश्चयात्मक नहीं है- भारतीय दर्शनशास्त्र से अनुमान (inference) को भी ज्ञान प्राप्त करने का साधन बताया गया है। पाश्चात्य दर्शन में तो अनुमान को सबसे बड़ा प्रमुख प्रमाण बताया गया है। पाश्चात्य दर्शन में अनुमान को बहुत अधिक महत्व दिया गया है व प्रत्यक्ष को अनुमान के बाद माना है अनुमान से तात्पर्य ज्ञात से अज्ञात की ओर जाना (to go from known to unknown) अनुमान शब्द में दो शब्दों का योग है अनु + मान अनु का अर्थ होता है बाद में तथा मान का अर्थ होता है ज्ञान अर्थात् बाद में प्राप्त होने वाला ज्ञान। उदाहरण के लिए बादलों को देखकर वर्षा का अनुमान लगाया जाता है।
चार्वाक दर्शन में अनुमान को बेकार प्रमाण या अनिश्चित प्रमाण (Source of Knowledge) बतलाया गया है। चार्वाक दर्शक के अनुमान तथा सही होता है चार्वाक दर्शन के अनुमान तभी सही होते है जब व्याप्ति सोदाहरणरहित (Universal relation) सोदाहरणरहित (doubtless) हो। चार्वाक दर्शन ने व्याप्ति को असम्भव माना है जबकि अनुमान हमेशा व्याप्ति पर ही निर्भर होता है अतः अनुमान भी अनिश्चित तथा संदेहपूर्ण बन जाता है। चार्वाक दर्शन के अनुसार कार्य कारण का सम्बन्ध में व्याप्ति का ही दूसरा रूप है चार्वाक दर्शन के अनुसार दो वस्तुओं को साथ-साथ देखकर दोनों के बीच का कार्य-कारण या व्याप्ति सम्बन्ध बताना मुश्किल होता है। चार्वाक दर्शन केवल इतना मानता है कि कभी-कभी कुछ अनुमान केवल संयोगवश सही हो जाते है। अतः अनुमान के सही होने की आकस्मिक (accidental) गुण के आधार पर अनुमान को सदैव सही नहीं कहा जा सकता है अतः चार्वाक दर्शन ने अनुमान को एक अलग-अलग प्रमाण (Source of Knowledge) के रूप में नहीं स्वीकार किया।
3. चार्वाक दर्शन के अनुसार, उपमान और शब्द को सही प्रमाण के रूप में नहीं माना जाता है - चार्वाक दर्शन में उपमान को एक प्रकार का अनुमान माना जाता है अतः उपमान को स्वतन्त्र प्रमाण नहीं माना जाता। शब्द से तात्पर्य वाक्य या वाक्यों के समूह से लगाया जाता है। बड़े-बड़े विद्वानों की बात सुनकर जो ज्ञान मिलता है, उसे शब्द प्रमाण कहा जाता है। सूत्र साहित्य के शब्द दो प्रकार के होते है :
1. लौकिक शब्द, 2. वैदिक शब्द।
चार्वाक दर्शन में न तो लौकिक शब्द माने जाते हैं और न ही वैदिक। चार्वाक दर्शन के अनुसार, वेद, पुराण, उपनिषद् आदि सभी बकवास है व धर्म के ठेकेदारों ने अपनी हस्ती बढ़ाने के लिए इनका प्रयोग किया है अतः यह वैदिक शब्द न मानते व लौकिक शब्द के बारे में कहते हैं कि सुनना तो एक प्रकार का प्रत्यक्ष है। शब्दों द्वारा दिया ज्ञान सदैव सही नहीं होता अतः इसमें भी सन्देह है अतः चार्वाक दर्शन के अनुसार, शब्द को सही प्रमाण कभी नहीं मानना चाहिये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
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- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
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- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
- प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
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- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
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- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?